भारतीय कृषि में भिंडी (लेडीफिंगर) एक महत्वपूर्ण फसल है, जिससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। यह फसल सर्दी-गर्मी दोनों मौसमों में उत्तम रूप से उगाई जा सकती है और इसकी खेती काफी सरल है। अगर कोई भी किसान भाई भिंडी की खेती (okra cultivation in india) करना चाहते हैं और इस खेती से मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आज आप बिल्कुल सही लेख को पढ़ रहे हैं। आज मैं आपको अपने इस महत्वपूर्ण लेख में भिंडी की खेती करने से संबंधित सभी प्रकार की जरूरी जानकारी दूंगा जो आपको उपयोगी और सहायक साबित होगी।
भिंडी का इतिहास
भिंडी, जिसे लेडीफिंगर या ओक्रा के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन और प्रसिद्ध फली है, जिसका इतिहास समृद्ध और रोचक है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में और औषधीय उद्योग में लंबे समय से हो रहा है। यह फली भारत, अफ्रीका, अमेरिका, और अन्य क्षेत्रों में प्राचीन समय से उगाई और खाई जाती रही है। भारत में भिंडी का प्राचीन इतिहास है।
इसका उल्लेख महाभारत महाकाव्य में भी मिलता है। महाभारत के कुछ पार्वों में भिंडी का उल्लेख और उसके प्रयोग का वर्णन मिलता है। यह विटामिन A, सी, कैल्शियम, पोटैशियम, आदि से भरपूर होती है। भिंडी का इस्तेमाल शाकाहारी और मांसाहारी भोजन को बनाने में भी किया जा सकता है।
भारत में भिंडी की खेती
भारत में भिंडी की खेती (okra cultivation in india) अलग-अलग राज्यों में की जाती है। इसकी खेती एक ऐसी खेती है, जहां चाहे किसान भाई वहां आसानी से कर सकते हैं। अगर यहां पर मैं आप सभी लोगों को आगे हमारे देश में कुछ ऐसे प्रमुख राज है, जहां परइसकी खेती काफी बड़ी मात्रा में होती है। चलिए इसके बारे में भी थोड़ा सा डिटेल जान लेते हैं।
- उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य जहां पर भिंडी की खेती व्यापक रूप से की जाती है। मुरादाबाद, मेरठ, मथुरा, आगरा, और इलाहाबाद जैसे जिलों में भिंडी की उत्पादन बड़ी मात्रा में किए जाते हैं।
- पंजाब: पंजाब भी भिंडी की उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जालंधर, फतेहगढ़ साहिब, और लुधियाना जैसे जिलों में भिंडी का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है।
- हरियाणा: उत्तर प्रदेश और पंजाब के बाद हरियाणा जैसे किसी प्रधान राज्य में भी इसकी खेती व्यापक और बड़ी मात्रा में की जाती है। करनाल, सोनीपत, और रोहतक जैसे जिलों में भिंडी की खेती होती है।
- बिहार: जिस प्रकार उत्तर प्रदेश खेती और किसानी के लिए जाना जाता है, बिहार के सभी पूर्वी इलाके में भिंडी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है और किसान भाई-बहन यहां से अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं।
- गुजरात: गुजरात में भिंडी की उत्पादन सबसे अधिक सूरत, अहमदाबाद, और वड़ोदरा जैसे शहरों में होता है।
भिंडी के खेत की तैयारी
आप जितना ज्यादा भिंडी की खेती (okra farming in india) को करने की प्रक्रिया को जानेंगे आप उतनी ही अच्छी पैदावार कर पाएंगे और मुनाफा भी अच्छा कमा सकेंगे। भिंडी की खेती को करने के लिए जलवायु और साथ ही साथ रोग प्रबंधन से संबंधित भी आपको महत्वपूर्ण जानकारी होनी चाहिए तभी आप इसकी अच्छी पैदावार कर सकते हैं।
इन सभी पहलुओं को हम आगे और भी विस्तार पूर्वक से जानेंगे परंतु फिलहाल में हम भिंडी की खेती को करने के लिए अपने खेत को किस प्रकार से तैयार कर सकते हैं? के बारे में जानना काफी महत्वपूर्ण है और आप इसके लिए नीचे हमारे द्वारा दी गई जानकारी को ध्यान से जरूर पढ़ें।
भिंडी का खेत तैयार करने की प्रक्रिया
- भिंडी की खेती (okra farming in hindi) को करने से पहले आप अपने खेत की दो-तीन बार जुताई करके खुला छोड़े। ऐसा करने से खेत को थोड़ा सा नमी मिलती है और इसमें अच्छे से हवा भी लग जाती है।
- जब खेत में थोड़ी हवा लग जाए तब आप इसमें खेत में प्रारंभिक सिंचाई करें ताकि मिट्टी को नमी मिले और बीजों को अच्छे से उगने की सुविधा हो।
- अब जब आपका खेत थोड़ा-थोड़ा सुख जाए और हल्की नामी बचे तब आप इसमें एक बार और खेत की जुताई का काम करवा ले। इस प्रक्रिया को करने से भिंडी की खेती को करने के लिए मिट्टी उपयुक्त और उपयोगी बन जाती है।
- अपने खेत को जोतने के बाद आपको इसमें खेत की मिट्टी को भिंडी की खेती (okra farming) करने के लिए उपयुक्त बनाने हेतु कॉम्पोस्ट, खाद, और जीवाणु योगानु का उपयोग करें।
- खेत को सही ढंग से बुनें, जिसमें समान आकार के खेत की खाई बनाई जाए।
- प्लोट की चौड़ाई और लंबाई को तय करें, जो खेत में पौधों की उच्च उत्पादकता को बढ़ावा दे।
- सही बीज का चयन करें और उसे सही गहनता में बोना जाए।
- बीज की दूरी और गहनता को सही रूप से मापें ताकि पौधे सही रूप से विकसित हों।
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
okra farming in hindi: भिंडी की खेती को करने के लिए सबसे पहले तो आपको अपने खेत को उपयुक्त ड्रेनेज सिस्टम के साथ बनाना होगा ताकि समय-समय पर आप अपने खेत में भिंडी के पौधों की सिंचाई आसानी से कर सकें और साथ ही मैं आपको बताना चाहूंगा कि भिंडी के लिए सुझावित pH स्तर 6.0 से 7.0 है। इस स्तर पर मिट्टी में उपयुक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता अधिक होती है।
लोमी मिट्टी यह मिट्टी उच्च उर्वरक स्तर और अच्छी ड्रेनेज के साथ लचीली होती है, इस प्रकार की मिट्टीमें भिंडी का पौधा अच्छे से उग सकता है। इसके अलावा बात की जाए रेतीली मिट्टी में पानी की संधारण अच्छी होती है लेकिन पोषक तत्वों की कमी होती है। इसमें पानी की बारीकी से ध्यान रखना होगा। हालांकि इस प्रकार की मिट्टी भिंडी की खेती को करने के लिए काफी सही और उपयोगी मानी जाती है।
भिंडी की खेती के लिए मौसम एवं जलवायु
okra farming in india: भिंडी की खेती (bhindi ki kheti) के लिए उपयुक्त मौसम और जलवायु काफी महत्वपूर्ण हैं। ये तत्व फसल के विकास और उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालते हैं। निम्नलिखित मौसम और जलवायु की जानकारी आपको भिंडी की उच्च उत्पादकता के लिए मदद कर सकती है:
मौसम
- उचित तापमान: भिंडी की बुआई के लिए उचित तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस रहता है। अगर इस प्रकार का तापमान मेंटेन रखकर खेती की जाए तो पौधे के विकास पर काफी अच्छा असर देखने को मिलता है और अच्छी मात्रा में भिंडी का उत्पादन संभव हो पता है।
- अच्छी बारिश: सही मात्रा में बारिश भिंडी के लिए आवश्यक है। लेकिन जल ठोस होना चाहिए, जिससे कीटों और रोगों का प्रकोप न हो। ज्यादा बारिश से भी भिंडी के पौधों पर फफूंदी या रोग हो सकते हैं। इसीलिए जब बारिश का मौसम समीप हो तो भिंडी की खेती करने से बचने की कोशिश करें।
- नियमित हवाई हलचल: नियमित हवाई हलचल भिंडी के पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यह फसल के पौधों को वायुमंडलीय अपशिष्ट मिलने की स्थिति से बचाता है।
जलवायु
- उच्च उर्वरकता: भिंडी की खेती (bhindi ki kheti) के लिए उच्च उर्वरकता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है। यह पौधों के विकास और फलने को बढ़ावा देती है।
- अच्छी सिंचाई: भिंडी की खेती करने के बाद समय-समय पर हल्की-हल्की मात्रा में आपको सिंचाई करनी चाहिए ज्यादा मात्रा में सिंचाई करना भी पौधे के लिए सही नहीं है। ध्यान रहे सिंचाई में आपकी मिट्टी ज्यादा गीली न होने पाए और ना ही सिंचाई इतनी कम करें की मिट्टी पूरी सुखी भी हो जाए।
- केंद्रीय वायुमंडलीय शर्तें: इस फसल के लिए मुख्य वायुमंडलीय शर्तें तापमान और वायुमंडलीय आवश्यकताएं हैं।
- अनुकूल मौसम: जिस भी समय फसल उगाई जाती है, वह समय उपयुक्त मौसम में होना चाहिए। उच्च तापमान या बारिश के संभावना से बचना चाहिए।
ध्यान दीजिए- इन मौसम और जलवायु संकेतों के आधार पर भिंडी की खेती का समय और तकनीकी निर्धारित की जा सकती है, जिससे फसल की उत्पादकता में सुधार हो सकता है। व्यापक रूप से इन सुझावों का पालन करके, किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और उत्पादन को बढ़ावा दे सकते हैं।
भिंडी की खेती करने के लिए सही बीज की मात्रा
आमतौर पर, bhindi ki kheti के लिए बीज की सामान्य मात्रा लगभग 4 से 6 किलोग्राम प्रति एकड़ (किसानों के क्षेत्र के आधार पर भी यह मात्रा बदल सकती है) होती है।
जब आप बीज का बोना करें, तो उसे गुणवत्ता वाली पोषक मिट्टी में हलके हाथों से बुवाई करनी चाहिए। बीज की उपयुक्त दूरी पर बोना जाना चाहिए ताकि पौधे सही स्थान पर विकसित हों।
यह बीज की मात्रा केवल एक सामान्य मानक है, इसलिए आपको स्थानीय कृषि विशेषज्ञों या किसानों से सलाह लेना बेहतर होगा। वे आपके क्षेत्र में स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अधिक जानकारी देने में सक्षम होंगे।
भिंडी की उन्नत किस्मे
भिंडी की उन्नत किस्में (वैरायटी) विभिन्न अनुसंधान केंद्रों द्वारा विकसित की जा रही हैं, जिनमें उत्पादकता और प्रतिरोधक्षमता में सुधार किया जाता है। यहां कुछ उत्कृष्ट भिंडी की उन्नत किस्में हैं:
- पूसा सावनी
- परभनी क्रांति
- अर्का अनामिका
- पंजाब पद्मिनी
- अर्का अभय
ध्यान दें- यह भिंडी की पांच प्रमुख किस्म है और आप इनमें से किसी भी किस्म की भिंडी की खेती को कर सकते हैं। पर ध्यान रहे जिस भी किस्म की भिंडी आप लगाना चाहते हैं, उसके बारे में अच्छे से जानकारी हासिल करें ताकि आप उसके अनुकूलित वातावरण एवं खेती के अनुसार इसकी पैदावार को अच्छे से कर सके और अच्छा मुनाफा कमा सके।
भिंडी की बुवाई का समय और विधि
bhindi ki kheti को करने के लिए आपको सबसे पहले बुवाई का सही समय और इससे संबंधित कुछ जरूरी विधि के बारे में जानना आवश्यक है और आप इसके लिए हमारे द्वारा नीचे दी गई विस्तृत जानकारी को ध्यान से समझे जो आपको भिंडी की खेती को करने में काफी उपयोगी और सहायक साबित होगी।
भिंडी की बुवाई का समय और विधि कुछ अंतरालों में आधारित होता है, लेकिन यहाँ एक सामान्य मार्गदर्शन दिया गया है:
भिंडी की बुवाई का समय
- शीत ऋतु (सर्दियों में): भिंडी की बुवाई नवंबर से फरवरी के माहों में की जा सकती है। यह ऋतु ठंडी जलवायु के अनुकूल होती है जो इस फसल के लिए उत्तम होती है।
- गर्मी (गर्मियों में): गर्मी के ऋतु में भी भिंडी की खेती करना अनुकूलित हो सकता है और गर्मियों में फसल उत्तम उगती है, तो आप भिंडी की बुवाई अप्रैल से जून के महीनों में कर सकते हैं।
भिंडी की बुवाई की विधि
- मिट्टी की तैयारी: मिट्टी को गहराई में खोदकर खेत को अच्छे से तैयार करें। मिट्टी को अच्छे से मुलायम बनाएं ताकि बीज अच्छे से फस सकें।
- बीज का चयन: उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें। बीज को ध्यान से चुनें ताकि पौधे स्वस्थ और प्रफुल्लित हो सकें।
- बोना और बिखराव: बीज को आवश्यक दूरी पर बोना जाए और फिर धीरे-धीरे धरती पर बिखराव किया जाए। बीजों की दूरी के बीच 15-20 सेंमी में होनी चाहिए।
- सिंचाई: पौधों को प्रारंभिक अवस्था में सिंचाई की आवश्यकता होती है। ऐसा करने से भिंडी के पौधों को जान मिलती है और पौधे अच्छे तरीके से विकसित होने लगते हैं।
भिंडी की खेती की सिंचाई
bhindi ki kheti in hindi: भिंडी की खेती में सिंचाई एक महत्वपूर्ण कदम है जो फसल की उत्पादकता को बढ़ावा देता है। सिंचाई के बिना भिंडी पौधे का सही विकास नहीं हो पाता है और फलने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। यहां भिंडी की खेती में सिंचाई के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं:
- सिंचाई का समय
- भिंडी के पौधों के लिए सही समय पर सिंचाई की जानी चाहिए।
- पौधों के निर्माण के दौरान और फलोत्पादन के समय में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- शर्दी के मौसम में प्रायः 7-10 दिनों की अंतराल पर सिंचाई करें। गर्मियों में यह अंतराल 4-5 दिनों का हो सकता है।
- सिंचाई की विधि
- बूंद सिंचाई: यह सबसे प्रभावी और उपयुक्त मानी जाती है। पौधों के आसपास छोटे-छोटे गड्ढे खोदें और उनमें पानी भरें।
- साइकल सिंचाई: इसमें पानी को सिंचाई की पाइप के माध्यम से पौधों के नीचे दिया जाता है।
- स्प्रिंकलर सिंचाई: बड़े खेतों में इसका उपयोग किया जा सकता है, जिससे पूरे खेत को सिंचाई की जा सके।
- डिप सिंचाई: पौधों के नीचे कुछ इंच तक खुदाई करके अधिक जल पहुंचाने की विधि है।
- पानी की मात्रा
- सिंचाई की मात्रा को समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। यह पौधों की आवश्यकताओं और मौसम की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
- पौधों के उम्र के अनुसार पानी की मात्रा बदलती रहनी चाहिए। जब भिंडी का पौधा थोड़ा बड़ा होने लगे, तब इसमें सिंचाई की मात्रा को धीरे-धीरे काम करना चाहिए अधिक मात्रा में सिंचाई इसके लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
- सिंचाई की व्यवस्था
- सिंचाई की व्यवस्था में पानी को नियमित अंतराल से प्रदान करें।
- उपयुक्त सिंचाई के लिए कृषि उपकरणों का उपयोग करें जैसे कि स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई, बूंद सिंचाई आदि।
- सिंचाई का समय
- सिंचाई को सुबह के समय करना लाभकारी होता है।
- रात्रि में सिंचाई करने से पानी की व्यर्थ कम होती है क्योंकि रात के ठंडे तापमान में पानी का अधिकतम प्रयोग होता है।
भिंडी की खेती के लिए सही मात्रा में खाद एवं उर्वरक
भिंडी की खेती के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को सही पोषण मिले और उत्पादकता बढ़े। यहाँ भिंडी की खेती के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरक की सामान्य रूप से उपयोग करने की मात्रा को समझाया गया है:
- नाइट्रोजन (N): नाइट्रोजन पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। भिंडी की खेती के लिए, प्रारंभिक चरण में खेत में 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का उपयोग किया जा सकता है।
- फॉस्फेट (P): फॉस्फेट पौधों के मजबूत जड़ों और फूलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक चरण में, खेत में 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फॉस्फेट का उपयोग किया जा सकता है।
- पोटाश (K): पोटाश पौधों के मजबूत और स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण है। खेत में 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पोटाश का उपयोग किया जा सकता है।
- उर्वरक (मिश्रण): भिंडी के पौधों को पोषित करने के लिए, आप खेत में उर्वरक का एक अच्छा मिश्रण इस्तेमाल करना बेहद अनिवार्य है, जो खाद के साथ मिलाकर खेत में छिड़का जा सकता है। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फेट, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, और माइक्रो-न्यूट्रिएंट्स का मिश्रण तैयार किया जा सकता है और उसके अपने इस मिश्रण को खेतों में अच्छे से छिड़काव किया जाना अनिवार्य है।
- समय सारित खेती की व्यवस्था: उपर्युक्त मात्राओं को प्राप्त करने के लिए, आप खेती की व्यवस्था के अनुसार उर्वरक को प्राप्त कर सकते हैं। समय सारित खेती सुनिश्चित करेगी कि पौधों को विकसित चरणों में सही मात्रा में खाद और उर्वरक मिलेगा।
ध्यान दें- कि यह मात्राएँ सम्पूर्णतः स्थानीय मानदंडों, मौसम और मिट्टी की विशेषताओं पर आधारित हो सकती हैं, इसलिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञों या निकटतम कृषि विभाग से सलाह लेना उचित होगा।
भिंडी की खेती के लिए निराई गुड़ाई की जानकारी
अगर आप भिंडी की खेती को बड़े पैमाने पर कर रहे हो तो आप सभी लोगों को इसकी निराई और गुड़ाई से संबंधित भी जानकारी होनी चाहिए।
निराई गुड़ाई के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करना अनिवार्य है:
- खेत की तैयारी: निराई गुड़ाई के लिए पहला कदम खेत की तैयारी है। खेत को अच्छे से पलटा और मुलायम किया जाता है ताकि निराई चमकीली छिद्रों को मिट्टी में बनाने के लिए सही मात्रा में पानी और ऊर्जा उपलब्ध हो सके।
- निराई गुड़ाई मशीन का उपयोग: आधुनिक कृषि में, निराई गुड़ाई के लिए विशेष मशीनें उपलब्ध होती हैं। इन मशीनों का उपयोग करके निराई छिद्रों को मिट्टी में बनाया जाता है।
- निराई की गुणवत्ता: निराई की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि निराई गुड़ाई के दौरान छिद्र अच्छे से बनाए जाएं ताकि बीजों को सही मात्रा में पोषण प्राप्त हो सके।
- समय समय पर निराई गुड़ाई का अनुपालन: निराई गुड़ाई का समय समय पर किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि बीजों को सही समय पर खेत में बोए जा सके और पौधे अच्छी तरह से उग सकें।
भिंडी की खेती में रोग और उनकी रोकथाम
भिंडी की खेती (bhindi ki kheti) में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं, जिनसे पौधों की उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। यहां कुछ मुख्य रोग और उनकी रोकथाम के उपाय दिए जा रहे हैं:
- दाग या लाल सफेद रोग (Powdery Mildew): यह रोग खासकर गर्म और गीले मौसमों में होता है। प्रतिकूल और सुखी मौसम में इस रोग का प्रसार कम होता है। इसे रोकने के लिए, पौधों को समय-समय पर नींबू का रस या सोडियम बायकार्बोनेट (सोडा) की दो-तीन प्रतिशत की छिड़काव खेत में कर देना चाहिए।
- भिंडी का मोज़ेक या डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew): यह रोग ठंडे और गीले मौसमों में होता है। इसे रोकने के लिए, समय-समय पर फफूंद के रोग पर काम करने वाले फफूंदनाशकों का इस्तेमाल करें।
- भिंडी का विविपाक (Fruit Rot): इस रोग को रोकने के लिए, पौधों के नीचे के पानी जमने की समस्या को दूर करने के लिए खेत में अच्छी ड्रेनेज का प्रयास करें। इसके अलावा, बर्तनाशकों का नियमित छिड़काव करें।
- रूट रोट (Root Rot): यह रोग पानी की ज्यादा मात्रा, विषैले जल और कमजोर मिट्टी के कारण होता है। इसे रोकने के लिए, उचित सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें और मिट्टी को सुखा रखें।
- खींचाव रोग (Nematode): इस रोग के खिलाफ उपाय में, पहले ही अच्छे बीज का चयन करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, मिट्टी में नेमाटोड को नष्ट करने के लिए जैविक उपायों का उपयोग करें, जैसे कि नीम का खाद और अन्य जैविक खाद।
- कीट प्रबंधन (Pest Management): अन्य कीटों जैसे कि भिंडी की जुआई मक्खियों, भिंडी की मेजबान जैविक खेती की लागत हो सकती है। इसके लिए, जैविक उपायों जैसे कि नेमाटोड का खाद और नेमतोडियासिस को खेतों में बोने जा सकते हैं।
भिंडी की कटाई / तुड़ाई
bhindi ki kheti: भिंडी की खेती में कटाई या तुड़ाई एक महत्वपूर्ण कदम है जो उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है। यहां पर हमने इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी और सावधानियां के बारे में बताया हुआ है:
- उपयुक्त समय: भिंडी की कटाई का सही समय बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्यत: बीजानुकूल पौधे 45-50 दिनों में पूरी तरह पक जाते हैं। तो कटाई का समय उसी के बाद के दिनों में आता है।
- कटाई का तरीका: भिंडी को तोड़ने के लिए एक तीखा कटाई उपकरण का उपयोग किया जाता है। पूरी तरह पके पौधों को काटा जाता है, जिससे नये फलों के विकास का रास्ता खुल जाता है।
- सावधानियाँ: कटाई के दौरान सावधानी बरतना बहुत महत्वपूर्ण है। बारिश के दिनों में कटाई न करें, क्योंकि यह फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।
- भूमि पर सावधानी: कटाई करते समय ध्यान दें कि बूटे पूरी तरह से निकले जाएं ताकि नये फल उग सके। भूमि को बहुत अच्छी तरह से साफ करें ताकि उसमें कोई रास्ता न रहे।
- संग्रह और निष्काशन: कटाई के बाद, भिंडी को एकत्रित किया जाता है और उसके बाद निष्काशन किया जाता है। इस तरीके से, उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखी जा सकती है।
FAQ.
Q.1 भिंडी के बीज की बुवाई करने के बाद इसका पौधा कितने दिनों में अंकुरित होने लगता है?
पौधे को अंकुरित होने में काम से कम 8 से 10 दिन या फिर 12 दिन तक का समय लग सकता है।
Q.2 1 एकड़ में भिंडी के बीज कि मात्रा?
यदि साधारण भिंडी की बात की जाए, तो लगभग 8-10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ लगाया जा सकता है और अगर आप भिंडी की खेती के लिए हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ऐसे में यह 5-6 किलोग्राम प्रति एकड़ तक हो सकती है।
Q.3 भिंडी के बीज को कितनी दूरी पर लगाना चाहिए?
भिंडी की फसल में पंक्तियों की दूरी 3 से 6 फुट की होनी चाहिए, इसके अलावा बीज को 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएं।
Q.4 गर्मियों में भिंडी की खेती कैसे करी जाती है?
भिंडी की फसल की बुवाई पंक्तिबद्ध की जाती है और सीधे बीज को जमीन में लगाया जाता है। इस दौरान गर्मियों में यदि आप इसकी खेती करते हो तो बीजों को कम दूरी पर लगाएं और लगभग 45 सेमी × 30 सेमी बीजों की बुवाई करें।
Q.5 भिंडी का हाइब्रिड बीज?
हाइब्रिड बीजों की खेती से फसल का उत्पादन अधिक होता है, इस विषय में भिंडी के लिए हाइब्रिड बीज एडवांटा सुनहरे, F1 हाइब्रिड है।