सूरन की खेती करके लाखों में कमाई, देखें सूरन की खेती करने का बेहतरीन तरीका जो देगा अधिक पैदावार

Written by Priyanshi Rao

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सूरन, जिसे हम जिमीकंद के नाम से भी जानते हैं| इसे सेवन से शरीर में गर्मी पैदा होती है, जिस वजह इसका सेवन ठंड के सीजन में काफी ज्यादा किया जाता है| स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सूरन काफी फायदेमंद है| यह हृदय रोग, डायबिटीज़ जैसी समस्या से छुटकारा दिलाता है| यह इन्सुलिन प्रोडक्शन में भी बढ़ोतरी करता है| इस वजह से लोगों के बीच सूरन की मांग बनी रहती है|

भारत के किसान भी सूरन की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं| यद् आप भी सूरन को अपने खेत में उगाकर इससे कमाई करना चाहते हैं तो हम आपको इसकी खेती से सम्बंधित महतवपूर्ण जानकारी के बारे में बताने जा रहे हैं| सूरन की खेती के लिए कौनसी मिट्टी उपयुक्त होती है| किस मौसम व जलवायु में सूरन की बुवाई की जाती है| आइये सूरन की खेती से जुडी जानकारी जानते हैं|

सूरन की खेती का इतिहास

सूरन की खेती प्राचीन समय से ही की जा रही है| पहले के समय में इसे व्यापक रूप से नहीं उगाया जाता था, लेकिन अब किसानों ने इसकी खेती करना प्रारंभ कर दिया है| पहले इसे घर के बाग़-बगीचे, घर के पीछे सीमित मात्रा में ही उगाया जाता था| मनाव स्वस्थ्य के लिए फायदेमंद होने की वजह से इसकी दीमंद बढती गई और आज सूरन की खेती भारत समेत दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मेडागास्कर, न्यू गिनी, प्रशांत द्वीप समूह, बांग्लादेश, और चीन में की जाती है|

भारत में सूरन की खेती (उत्पादन और सबसे ज्यादा कहाँ)

भारत के कई राज्यों में सूरन (जिमीकंद) की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है| दक्षिण भारत में इसकी सबसे ज्यादा खेती की जाती है| बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सूरन की खेती करने में अग्रिम राज्य हैं| लगातार किसान सूरन की पैदावार को बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं|

सूरन में पोषक तत्वों की मात्रा

  • पानी- 6 ग्राम
  • ऊर्जा- 118 किलो कैलोरी
  • प्रोटीन- 53 ग्राम
  • कुल लिपिड (वसा)- 17 ग्राम
  • कार्बोहाइड्रेट- 9 ग्राम
  • ऐश- 882 ग्राम
  • फ़ाइबर- 1 ग्राम
  • शुगर- 5 ग्राम
  • कैल्शियम- 17 मिलीग्राम
  • आयरन- 54 मिलीग्राम
  • मैग्नीशियम- 21 मिलीग्राम
  • फ़ॉस्फोरस- 55 मिलीग्राम
  • पोटैशियम- 816 मिलीग्राम

खेत की तैयारी

यदि आपको सफलतापूर्वक सूरन की खेती करनी है तो पहले अच्छी तरह से खेत को तैयार करना होगा| जिमीकंद की खेती के लिए आपको खेती की तैयारी किस तरह से करनी है, इसकी जानकारी स्टेप बाय स्टेप नीचे दी गई है|

  • सर्वप्रथम आपको अपने खेत की सफाई करनी है|
  • सफाई के दौरान पूरनी खेती के अवशेष व खरपतवार को हटा दें|
  • इसके बाद जुताई का कार्य करें।
  • आपको करीब 2 से 3 बार खेत की जुताई करनी चाहिए।
  • ध्यान रहे सूरन पूरी तरह जमीन के अंदर ही लगता है, इसलिए आपको गहरी जुताई करने की आवश्यकता है|
  • ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल से आप खेत की जुताई करें।
  • इसके बाद कल्टीवेटर की मदद से जुताई करें।
  • अंत में खेत को समतल कर दें।
  • इस तरह से सूरन की खेती के लिए आपका खेत तैयार हो जायेगा।

सूरन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

सूरन की सफलतापूर्वक खेती करने के लिए आपको उपयुक्त मिट्टी से सम्बंधित जानकारी होनी चाहिए| बता दें कि सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को श्रेष्ठ माना गया है| इसकी सफल खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की जरुरत होती है| बलुई दोमट मिट्टी की जल निकासी बेहतर होती है| इस मिट्टी के प्रयोग से आपको जल भराव की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा| की खेती हेतु मिट्टी का पीएच मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए।

सूरन की खेती के लिए मौसम व जलवायु

सूरन की सफल खेती करने के लिए आपको सही मौसम और जलवायु का चयन करना होता है| नीचे आपको जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मौसम और जलवायु से सम्बंधित जानकारी दी गई है।

मौसम

  • गर्मी का मौसम सूरन के लिए सही माना गया है|
  • आप ठंड में इसकी बुवाई ना करें।
  • पानी की सुविधा यदि आपके खेत में है तो फ़रवरी-मार्च में इसकी खेती हेतु बुवाई कर सकते हैं|

जलवायु

  • सूरन हेतु गर्म और आर्द्र जलवायु जलवायु सबसे बेहतर होती है।
  • सूरन एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फसल होती है|
  • इसकी खेती के दौरान 7-8 महीने तक 30-35 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना जरूरी है|
  • इस तापमान में इसकी वृद्धि अच्छी होती है|
  • 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान सूरन की गुणवत्ता को कम कर देता है।

बीज की मात्रा

बीजों की मात्रा आप खेत के आकार, बीज की गुणवत्ता व उनकी किस्म के आधार पर निर्धारित कर सकते हैं| यदि आप एक एकड़ में 4,000 बीजों को रोपित कर सकते हैं| आपको इसके कंद को 750-1,000 ग्राम के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर रोपित करना चाहिए|

सूरन की उन्नत किस्में

  • गजेंद्र
  • एन-15
  • राजेंद्र ओल
  • संतरा गाची
  • श्री पद्मा
  • कुसुम

गजेन्द्र

सूरन की इस किस्म को भारत में ही तैयार किया गया है| गजेन्द्र किस्म को कृषि विज्ञान केंद्र संबलपुर द्वारा  तैयार की गई है| आप इस किस्म को बारिस के मौसम में उगा नहीं सकते| इसके एक पौधे से मात्र एक ही फल निकलता है| इसके फल के अंदर से हल्का नारंगी रंग का गूदा निकलता है| इसकी किस्म की पैदावार देखें तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 80 टन की पैदावार होती है|

श्री पद्मा (एम -15)

दक्षिण भारत में सूरन की सबसे ज्यादा पैदावार होती है| श्री पद्मा दक्षिण भारत की ही स्थानीय किस्म है| इसका भी एक पौधा मात्र एक ही फल देता है| इसका सेवन करने से आपको खुजली की समस्या भी नहीं होती| यह दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है| एक हेक्टेयर भूमि पर इसकी पैदावार 70 से 80 टन के करीब होती है|

संतरागाछी

5 से 6 माह में सूरन की इस किस्म की पैदावार शुरू हो जाती है| भारत की इस देशी किस्म को भी काफी पसंद किया जाता है| इसके एक पौधे में एक से अधिक फल आते हैं| इस किस्म की तासीर हल्की गर्म होती है, हालाँकि इसके सेवन से आपको हल्की खुजली जैसी समस्या देखने को मिल सकती है| प्रति हेक्टेयर भूमि पर इसकी पैदावार करीब 50 टन के आसपास होती है|

सूरन की बुवाई का समय व विधि

बुवाई करने की प्रक्रिया: इसकी बुवाई आलू की तरह कंद रूप में होती है| आप इसे काटकर या पूरा लगा सकते हैं| यदि आप कटिंग वाले कंदों का उपयोग कर रहे हैं तो अंकुरण हेतु कलिका, आंखों का होना आवश्यक है।

बीजोपचार: आपको बुबाई से पहले बीजोपचार करना भी जरूरी है| आप इमीसान 5 ग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कंद को 25-30 मिनट तक उपचारित करें और इसे छाया में सूखने दें|

समय: सूरन की बुवाई करने का सही समय बारिश के ठीक पहले और उसके बाद होता है| अप्रैल-मई व जून का महीना इसकी बुवाई के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है| आप गर्मी के समय मार्च में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपके खेत में सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए|

विधि: सूरन की बुवाई के लिए मुख्य तौर पर 2 विधियाँ की जाती हैं| पहली विधि गड्ढों में व दूसरी चौरस खेत में है| इन दोनों विधियों की जानकारी के बारे में आप नीचे पढ़ सकते हैं|

गड्ढों में: इस विधि में चौड़े और गहरे गड्ढों में कंदों की रोपाई की जाती है| जब आप बुवाई करें तो उपरी सतह पर 15 सेंटीमीटर ऊँचा मिट्टी का टीला बना दें| इस विधि में आपको 75 x 75 x 30 सें.मी चौड़ा और गहरा गद्दा खोदना है|

चौरस खेत में: इस विधि के अंतर्गत आपको 75 से 90 सें.मी. की दूरी पर 20 से 30 सें.मी. गहरी नाली का निर्माण करना है, इसके बाद आप कंदों की बुवाई कर सकते हैं| जब बुवाई पूर्ण हो जावे तो नाली को मिट्टी की सहायता से ढंक देवें|

सिंचाई

यदि आप मानसून से पहले बुवाई करते हैं तो आपको बारिश से पहले हल्की दो सिंचाई करने की जरूरत होती है| सूरन की फसल को अधिक पानी की जरुरत होती है, इसलिए आप हफ्ते में 2 बार सिंचाई करते रहें| आपको खेत में जल भराव ना हो इसे ध्यान में रखते हुए सिंचाई करनी है|

खाद व उर्वरक

कंद की अच्छी उपज हासिल करने के लिए आपको खाद व उर्वरक का इस्तेमाल सही मात्रा में करना होगा| आपको मिट्टी में सडी गोबर की खाद मिलानी होगी| इसके अलावा नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम एवं पोटाश 80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के अनुसार मिलाना है| फास्फोरस को जमीन में मिलाना है| अन्य तत्व को कंदों पर 60 से 80 दिन की फसल होने केबाद जमीन में डालें।

निराई व गुड़ाई

सूरन की खेती करने के दौरान आपको सामान्य खरपतवार नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है। इसे नियंत्रित करने के लिए आप बीजों बुवाई के 15 दिन पश्चात् निराई-गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहिए। सूरन के पौधों को 3-4 दिन निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।

रोग और उनकी रोकथाम

  • झुलसा रोग
  • तना गलन
  • तम्बाकू सुंडी

झुलसा रोग: इस रोग में जीवाणु पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाने लगते हैं| यदि पौधा इस रोग की पकड़ में आ जाता है तो पत्तिया हल्के भूरे रंग की हो जाती हैं| सितम्बर माह में आमतौर पर यह रोग होता है| पत्तियां कमजोर होकर गिरने लगती हैं और पौधे का विकास धीरे-धीरे बंद हो जाता है| इंडोफिल या बाविस्टीन का छिड़काव कर आप इस रोग से बच सकते हैं|

तना गलन: यदि आपके खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था नहीं है तो जल भराव के कारण यह रोग पौध को लग जाता है| यह रोग पौधे के तने को गला कर यूज़ नष्ट कर देता है| इससे बचने के लिए आपको कैप्टान दवा का छिड़काव पौधों की जड़ो में करना चाहिए|

तम्बाकू सुंडी: यह रोग एक विशेष प्रकार के किट की वजह से होता है| तम्बाकू सुंडी का लार्वा पौधों की पत्तियों पर  सुंडी के रूप में आक्रमण करता है। धीरे-धीरे यह पौधों की पत्तियों को खाकर उसे नष्ट कर देता है। तम्बाकू सुंडी रोग जून और जुलाई में अधिक फैलता है| इस रोग से बचाव करने के लिए आपको मेन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए|

कटाई/ तुड़ाई

बुआई के सात से आठ महीने बाद आप खोदकर सूरन को निकाल सकते हैं| ध्यान रहे कि जब इसके पौधे की पत्तियाँ पीली पड़ जावें और सूखने लगे तब इसकी फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं| खुदाई करने के बाद कंदों की मिट्टी को साफ़ कर दें और 2 से 3 दिन धूप में रख देवें| इसके बाद आपको हवादार भण्डार घर में एक लकड़ी का मचान बनाकर इसे स्टोर करना है| इस विधि से आप 5 से 6 महीने इसका भण्डारण कर सकते हैं|

About Priyanshi Rao

मेरा नाम प्रियांशी राव है और मैं इस ब्लॉग की संचालक हूं। इस ब्लॉग पर मैं कृषि से जुड़े विषयों पर जानकारी देती है। मैंने कृषि विषय से अपनी पढाई की है और इस वजह से शुरुआत से ही मुझे कृषि से सम्बंधित कार्यों में काफी रूचि रही है। हरियाणा के एक गावं की रहने वाली हूं और उम्मीद करती हूं की मेरे द्वारा दी गई जानकारी किसान भाइयों के बहुत काम आ रही होगी। आप मुझे निचे दी गई ईमेल के जरिये संपर्क कर सकते है।

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