कपास की खेती कैसे करें, सम्पूर्ण जानकारी, खेत की तैयारी, उन्नत किस्मों की सूची

Written by Priyanshi Rao

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किसान भाइयों हमारा भारत देश कपास की खेती (cotton cultivation in india) के लिए दूसरे नंबर पर जाना जाता है, पहले नंबर पर चीन आता है। पहले के मुकाबले कपास की उपयोगिता और इसकी विभिन्न प्रकार की उपयोगिता को मध्य नजर रखते हुए इसकी खेती करना काफी लाभदायक साबित हो सकता है। कपास की खेती (cotton cultivation in india) को सफेद की खेती के नाम से भी जाना जाता है।

किसान भाइयों मई का महीना आ चुका है और अब कपास की खेती (cotton cultivation) को करने का उचित समय भी आपके पास है और अगर आप ऐसे में कपास की खेती कैसे करें?, cotton cultivation in hindi , cotton farming in India , kapas ki kheti kaise kare? के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते हैं। तो आप हमारे इस लेख को बस अंतिम तक पढ़े आपके मन में जो भी इस खेती को लेकर सवाल है उन सभी सवालों का जवाब इसी लेख में मिल जाएगा।

भारत में कपास की खेती का इतिहास

हमारे देश में कपास की खेती का इतिहास बहुत पुराना है और यह एक मुख्य कृषि फसल है, जिसका उपयोग अनेक क्षेत्रों में किया जाता है। हमारे देश में कपास की खेती की शुरुआत लगभग 5000 ईसा पूर्व के आस-पास किया गया था। इस फसल को भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में उगाया जाता था।

इसकी खेती की मुख्य रूप से शुरुआत  उत्तर भारत में हुई थी, जहां प्राचीन समय में यह फसल उगाई जाने लगी थी। मौर्य साम्राज्य के समय में भी कपास की खेती व्यापक रूप से होती थी। कपास की खेती का व्यापार मध्य भारत में भी फैल चुका है।

कपास की खेती का विशेष महत्व मुगल साम्राज्य के शासनकाल में हुआ जब इसे एक उत्कृष्ट फसल के रूप में देखा गया और उत्तम गुणवत्ता की कपास उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया गया। मुगल साम्राज्य के कृषि मंत्री अमीर खुसरो द्वारा इस फसल को बढ़ावा दिया गया था।

ब्रिटिश शासन काल में भी कपास की खेती को महत्वपूर्ण बनाया गया। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने कपास के उत्पादन को बढ़ावा दिया और यह भारत की मुख्य नकदी फसलों में से एक बन गया।

स्वतंत्रता के बाद, भारतीय कृषि नीतियों ने कपास के उत्पादन को और बढ़ावा दिया। उच्च गुणवत्ता वाली बीज, पोषण, और उन्नत तकनीकियों के उपयोग से कपास की उत्पादनता में मजबूती आई। आज, कपास भारत की प्रमुख अनाज फसलों में से एक है और यह देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में कपास की खेती (उत्पादन और सबसे ज्यादा कहां)

कपास के उत्पादन में भारत के निम्नलिखित राज्यों का प्रमुख योगदान है:

  1. पंजाब
  2. हरियाणा
  3. राजस्थान
  4. मध्य प्रदेश
  5. गुजरात
  6. महाराष्ट्र
  7. उत्तर प्रदेश
  8. तेलंगाना
  9. कर्नाटक
  10. आंध्र प्रदेश

ध्यान दीजिए- इन राज्यों में पंजाब और हरियाणा भारत के कपास के उत्पादन में मुख्य रूप से अहम भूमिका निभाते हैं। यहाँ पर कपास की उत्पादनता मात्रा सबसे अधिक होती है। उत्तर प्रदेश भी कपास के बड़े उत्पादक राज्यों में शामिल है।

कपास की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

कपास की खेती (cotton cultivation) को करने के लिए आपको सबसे पहले अपने खेत को उसी हिसाब से तैयार करना जरूरी है इस हिसाब से इसकी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी हो सके और इसके लिए आप नीचे दी गई जानकारी को पढ़ें।

कपास का खेत तैयार करने की प्रक्रिया

  • सबसे पहले, अच्छी नमी वाली और अच्छी ड्रेनेज सुविधा वाली जमीन का चयन करें।
  • जमीन की गहराई की जांच करें और उसे जरुरत अनुसार पूरा करें।
  • जमीन में जरूरी खाद्य पदार्थों की जांच करें।
  • जमीन को अच्छे से खेतों में बाँटें और उन्हें बनाने के लिए जरूरी मशीनरी का इस्तेमाल करें।
  • कपास के बुआई के लिए बेहतर समय का चयन करें। यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल और मई के महीनों में होता है।
  • बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए। बुआई करते समय सही दूरी और गहराई का ध्यान रखें।
  • बुआई के बाद, सही मात्रा में खाद्य देना न भूलें।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

cotton cultivation in hindi: कपास की खेती के लिए मौसम और जलवायु काफी महत्वपूर्ण होते हैं। यह वास्तव में एक उन्नति और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फसल है, और उसके लिए उचित मौसम और जलवायु आवश्यक होते हैं। यहां कुछ मुख्य बातें हैं जो कपास की खेती के मौसम और जलवायु के संबंध में जानकारी प्रदान करती हैं:

कपास की खेती के लिए मौसम एवं जलवायु

cotton cultivation in hindi: कपास के लिए उपयुक्त मौसम और जलवायु के बारे में निम्नलिखित जानकारी है:

मौसम

  1. उचित तापमान: कपास के लिए उचित तापमान का महत्वपूर्ण होता है। यह 21-30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।
  2. अच्छी बारिश: कपास की खेती के लिए सही मॉनसूनी वर्ष का आना बहुत महत्वपूर्ण है। यह फसल पर सीधा प्रभाव डालता है।
  3. अच्छी बर्फबारी: कपास की बुआई के समय अगर थोड़ी बर्फ पड़े तो यह उसके लिए उत्तम होता है। बर्फ की बारीश से बोए गए बीज अच्छे रूप से उग जाते हैं।

जलवायु

  1. गर्मी का जलवायु: कपास उच्च तापमान और सुखी और ठंडी रातों के लिए उत्तम होती है।
  2. अच्छी सिंचाई: ज्यादा वर्षा कपास के लिए अच्छी नहीं होती है, क्योंकि यह फसल सूखे की अवस्था में अच्छे से उगती है।
  3. केंद्रीय वायुमंडलीय शर्तें: खरबूजे की खेती के लिए शांत वायुमंडल अच्छा होता है, जिससे प्लांट्स को अच्छी तरह से विकसित होने में मदद मिलती है।
  4. अनुकूल मौसम: कपास की फसल के लिए अच्छा जलवायु जरूरी होता है जिसमें सूखा और गर्मी शामिल होती है।

कपास की खेती करने के लिए सही बीज की मात्रा

प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा विभिन्न वारियटी और क्षेत्र के आधार पर भिन्न हो सकती है। सामान्य रूप से, बीज की मात्रा 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के बीच होती है।

कपास की उन्नत किस्मों की सूची 

कपास (Cotton) कई प्रकार की किस्मों में उपलब्ध होती है। ये किस्में विभिन्न जलवायु और मिट्टी की शर्तों के अनुसार विकसित की गई हैं, जिनमें वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक का प्रयोग किया गया है। निम्नलिखित कुछ उन्नत कपास की किस्में हैं:

  1. बीटा (Beta): यह किस्म अप्रैल के आखिरी सप्ताह से मई के पहले सप्ताह तक बोई जाती है।
  2. महामना (Mahamana): यह किस्म अप्रैल के आखिरी सप्ताह से मई के दूसरे सप्ताह तक बोई जाती है।
  3. हिंडल (H-6): यह किस्म जून के पहले सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक बोई जाती है।
  4. बागेश्वरी (Bagheshwari): यह किस्म जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक बोई जाती है।
  5. रेगनेट (Regnate): यह किस्म जूलाई के दूसरे सप्ताह से अगस्त के पहले सप्ताह तक बोई जाती है।
  6. जी. टी. कॉटन (G. T. Cotton): यह किस्म जूलाई के दूसरे सप्ताह से अगस्त के पहले सप्ताह तक बोई जाती है।

कपास की बुवाई का समय और विधि

cotton cultivation in hindi: कपास की बुवाई का समय और विधि भारत में क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग हो सकती है, लेकिन यहाँ एक सामान्य तरीका दिया जा रहा है:

कपास की खेती के लिए सही समय

  • समय: कपास की बुवाई करने के लिए काफी सिंचाई की जरूरत होती है, इसलिए इसे गर्मियों के महीनों में बोया जाता है। भारत के अधिकांश क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल के मध्य तक कपास की बुवाई की जाती है।

कपास की खेती करने की विधि

  • जमीन की तैयारी: सबसे पहले जमीन को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। यह सम्मिलित खेती तकनीक के आधार पर किया जाता है जिसमें जमीन को कुछ दिनों तक पानी दिया जाता है ताकि खराबी और खींचाव कम हो।
  • बीज का चुनाव: बीज का चुनाव उन बीजों के आधार पर किया जाता है जो क्षेत्र के उपयुक्त होते हैं।
  • बुआई: बुआई के लिए बिजाई मशीन का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे कि बुआई का कार्य तेजी से हो और प्रभावी तरीके से हो।
  • पानी देना: कपास को बुआई के बाद पानी देना शुरू कर देना चाहिए। पहले 3-4 हफ्ते में पानी देना अच्छा होता है, जिससे कपास के बुढ़े बुढ़े अंकुर बन सकें।
  • खाद देना: खाद को पूर्व-सूचना के अनुसार देना चाहिए ताकि पौधों को सही पोषण मिल सके।
  • रोपाई: कपास की रोपाई जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं तब की जाती है। इसके लिए या तो मशीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है या हाथ से भी की जा सकती है।

कपास की खेती की सिंचाई 

यहां कुछ चरण हैं जिन्हें आपको कपास की खेती (cotton farming) में सिंचाई के लिए ध्यान में रखना चाहिए:

  1. पहली सिंचाई (Irrigation at planting time): बीज बोने के समय पहली सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण है। इससे बीज अच्छे से निकल सकते हैं और उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
  2. दूसरी सिंचाई (Second Irrigation): बीज अच्छे से निकलने के बाद, जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तब दूसरी सिंचाई की जाती है। इससे पौधे मजबूत होते हैं।
  3. तीसरी सिंचाई (Third Irrigation): कपास के पौधे और अच्छे से बढ़ जाने पर, उन्हें तीसरी सिंचाई की जाती है। यह पौधों की स्वस्थता और वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
  4. चौथी सिंचाई (Fourth Irrigation): यह सिंचाई फूलने और फलने के दौरान की जाती है। यह उत्पादन के दौरान मात्रा को बढ़ा सकती है।
  5. अंतिम सिंचाई (Final Irrigation): फसल के पूर्ण विकास के समय पर, अंतिम सिंचाई की जाती है। इसमें फसल को पूरी तरह से पर्याप्त पानी प्राप्त होने का सुनिश्चित किया जाता है।

कपास की खेती के लिए सही मात्रा में खाद एवं उर्वरक

कपास की खेती (cotton farming) के लिए उपयुक्त खाद और उर्वरक की मात्रा क्षेत्र के मौसम, मिट्टी की गुणवत्ता, एवं पूर्व की खेती की स्थिति पर निर्भर करती है। यहां कुछ मानक मात्राएँ दी जा रही हैं:

  1. नाइट्रोजन (N): कपास की खेती के लिए नाइट्रोजन बहुत महत्वपूर्ण है। पौधों के उत्पादन के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। सामान्यत: 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में नाइट्रोजन दी जा सकती है।
  2. फॉस्फेट (P): फॉस्फेट की खासतर सोयाबीन और मक्का की खेती में ज्यादा लाभकारी है, लेकिन कपास के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। सामान्यत: 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में फॉस्फेट उपयुक्त होता है।
  3. पोटाश (K): पोटाश की खासतर सुगरकेन और बार्ली की खेती में उपयुक्त है, लेकिन कपास के लिए भी यह जरूरी है। सामान्यत: 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में पोटाश दिया जा सकता है।
  4. सल्फर (S): सल्फर की भी खेती में महत्वपूर्ण भूमिका है, खासकर उत्तर भारत में। सामान्यत: 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में सल्फर का उपयोग किया जा सकता है।

कृपया ध्यान दें- इनमें से कुछ मात्राएँ बदल सकती हैं जैसे की जमीन की पूर्व की खेती, विशेष धान्य के लिए बेहतर मात्रा इत्यादि, इसलिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित होगा।

कपास की खेती के लिए निराई गुड़ाई की जानकारी

Kapas ki kheti में निराई गुड़ाई एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें खेत की जमीन को उपयुक्त तरीके से तैयार किया जाता है ताकि कपास की पौधों को अच्छे से उगाने की संभावना बढ़ जाए। यहां कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है:

  1. मानसून के बाद गुड़ाई: बेहतर उत्पादकता के लिए, निराई गुड़ाई को मानसून के बाद किया जाता है। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और पौधों के लिए उपयुक्त परिस्थितियां बनती हैं।
  2. पूर्व-बुरी जमीन: कपास के लिए उत्तम मिट्टी भूमि भूमि दो तरह की मानी जाती है – पूर्व-बुरी जमीन (चीकन मिट्टी) और बुरी जमीन (लोमड़ी मिट्टी)। पूर्व-बुरी जमीन बेहतर उत्पादकता के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
  3. खेत की तैयारी: निराई की गुड़ाई से पहले खेत की तैयारी करनी चाहिए। इसमें अच्छे तरीके से खेत की सीमाएं निकालना, खेत की सतह को समान और सीधा करना, और मिट्टी को अच्छे से मिश्रित करना शामिल है।
  4. खाद: खेत में उपयुक्त खाद डालना भी महत्वपूर्ण है। कपास के लिए जीवाश्म खाद या नाइट्रोजन, फॉस्फेट, पोटाश युक्त खाद उपयुक्त हो सकती है।
  5. निराई की गुड़ाई: गुड़ाई का सही समय किसान के राज्य और जलवायु पर निर्भर करता है। कुछ क्षेत्रों में गुड़ाई गेहूं की फसल के बाद की जाती है, जबकि कुछ जगहों पर गुड़ाई गेहूं के साथ साथ की जाती है। गुड़ाई की गहराई को भी ध्यान में रखना चाहिए, आमतौर पर 20-25 सेंटीमीटर की गहराई मानी जाती है।
  6. मशीनरी उपकरण: आधुनिक खेती में, ट्रैक्टर और निराई के अन्य मशीनरी उपकरण का उपयोग किया जाता है जो गुड़ाई काम को सुगम बनाते हैं।
  7. पानी का सही प्रबंधन: गुड़ाई के बाद पानी की योजना और प्रबंधन भी ध्यान में रखना चाहिए, ताकि पौधों को सही मात्रा में पानी मिल सके।
  8. पौधों की सही डिस्टेंसिंग: कपास के पौधों की सही दूरी बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे अच्छे से उग सकें।

कपास की खेती में रोग और उनकी रोकथाम

Kapas ki kheti में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं जिन्हें रोकने के लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं। यहां कुछ आम कपास के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय दिए जा रहे हैं:

  1. डेड रूट (Dead Rot): यह रोग कपास की जड़ों पर होता है और इससे पौधों की मृत्यु हो सकती है। इसका प्रबंधन करने के लिए स्वच्छ कुंद प्रयोग करें और पानी की अधिकता से बचें।
  2. डैम्पिंग ऑफ (Damping Off): यह नवजात पौधों पर प्रभाव डालता है और उन्हें मर जाने की स्थिति में ला सकता है। इसके लिए पानी की अधिकता से बचें, उचित फसल प्रबंधन का ध्यान रखें।
  3. रेड लीफ (Red Leaf): इस रोग में पत्तियाँ लाल हो जाती हैं। इसका उपाय करने के लिए रोगप्रतिरोधी कणों से बुआई करें और उचित पोषण प्रदान करें।
  4. वायरस डिजीज (Virus Diseases): कपास में कई प्रकार के वायरस रोग हो सकते हैं। इसके लिए उचित बीज सिलेक्शन करें, रोगप्रतिरोधी प्रबंधन करें और प्रमुख रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए वायरस रोधी बीज प्रयोग करें।
  5. रूस्ट (Rust): यह रोग पत्तियों पर पीले या भूरे धब्बे बना देता है। इसके लिए फंगीसाइड का प्रयोग कर सकते हैं।
  6. वायरस (Wilt Virus): इससे कपास के पौधे सूख जाते हैं। इसका उपाय करने के लिए उचित बीज सिलेक्शन करें और विषाक्त भूमि से बचें।
  7. पॉड बोरर (Pod Borer): यह कीटनाशकों से रोकथाम के लिए कीटनाशकों का उपयोग कर सकते हैं।
  8. कॉटन थ्रिप्स (Cotton Thrips): इसका प्रबंधन करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करें और नियमित जाँच-परख करें।

कपास की खेती में कटाई / तोड़ाई

कपास की खेती (Kapas ki kheti) में कटाई या तोड़ाई के लिए कुछ महत्वपूर्ण चरण होते हैं। ये चरण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. फसल की परिप्रेक्ष्य
  • कपास की खेती में कटाई का समय अगर फसल की परिप्रेक्ष्य में किया जाता है तो यह फसल के विकास के लिए बेहतर होता है। यह उत्तम उत्पादन की सुनिश्चितता करता है।
  1. कटाई की तारीख़
  • कपास की कटाई का समय सही होना चाहिए। इसके लिए अवश्यक है कि फसल के पूरे विकास का समयानुसार कटाई करें। ध्यान रखें कि अगर फसल अधूरी रह जाती है, तो यह उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
  1. कटाई के उपकरण
  • अच्छे कटाई उपकरण का प्रयोग करें। यह सुनिश्चित करेगा कि कटाई सही ढंग से हो रही है और फसल को किसी भी नुकसान से बचाएगा।
  1. कटाई की तकनीक
  • कपास की कटाई के लिए सही तकनीक का प्रयोग करें। यह फसल की सुरक्षा और उत्पादन को बढ़ावा देगा।
  1. कटाई के बाद की देखभाल
  • कटाई के बाद फसल की देखभाल करें। यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी बची हुई फसल का नुकसान न हो और फसल को स्टोर करने के लिए उचित तरीके से तैयार किया जा सके।

FAQ

Q.1 कपास कौन से महीने में बोया जाता है?

कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में, देसी कपास आमतौर पर अगस्त-सितंबर में बोई जाती है ।

Q.2 1 एकड़ में कितना कपास होता है

औसतन, हम प्रति हेक्टेयर से 2 से 4 टन (4400 से 8800 पाउंड) कपास, या प्रति एकड़ से 0,8 से 1,6 टन (1760 से 3527 पाउंड) कपास की फसल उपजा सकते हैं।

Q.3 कपास को पकाने में कितने दिन लग जाते हैं

कपास को पकाने में कुल 150 से 180 दिन के बीच का समय लग जाता है।

Q.4 कपास के बीज का रेट क्या है

कपास का बीज ₹6828.33 / क्विंटल मार्केट में उपलब्ध है।

About Priyanshi Rao

मेरा नाम प्रियांशी राव है और मैं इस ब्लॉग की संचालक हूं। इस ब्लॉग पर मैं कृषि से जुड़े विषयों पर जानकारी देती है। मैंने कृषि विषय से अपनी पढाई की है और इस वजह से शुरुआत से ही मुझे कृषि से सम्बंधित कार्यों में काफी रूचि रही है। हरियाणा के एक गावं की रहने वाली हूं और उम्मीद करती हूं की मेरे द्वारा दी गई जानकारी किसान भाइयों के बहुत काम आ रही होगी। आप मुझे निचे दी गई ईमेल के जरिये संपर्क कर सकते है।

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