मूली की खेती कैसे करें, देखे मूली की फसल से बम्पर पैदावार लेने का बेहतरीन तरीका

Written by Priyanshi Rao

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सलाद को स्वादिस्ट बनाने के लिए हम तरह-तरह की सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं। इसमें मूली का नाम भी शामिल है। मूली को मुख्यतः सलाद के रूप में ही उपयोग किया जाता है। कई लोग इसके पत्तों की सब्जी व मूली के पराठे भी बनाकर खाते हैं। पोषक तत्वों की दृष्टि से भी यह बहुत मुख्य सब्जी है, जिस वजह से इसकी मांग बाज़ार में साल भर बनी रहती है। इस कारण मूली की खेती (radish cultivation)विश्वभर में बड़े स्तर पर की जाती है।

भारत में भी मूली की खेती (radish farming in India) कर किसान बहुत मुनाफा कमा रहे हैं। बिना परेशानी के आप अपने खेतों में मूली की खेती (radish farming)कर सकते हैं। इस खास आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि मूली की खेती कैसे की जाती है। इसके लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी है। आइये इस लेख में आपको मूली से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी के बारे में बताते हैं।

मूली की खेती का इतिहास

Radish Farming In Hindi: मूली जिसका एक सामान्य नाम मूला भी है। यह नाम लैटिन शब्द मूल से लिया गया है, जिसका मतलब जड़ होता है। प्राचीन समय से कई देश Muli ki kheti करते आ रहे हैं। कहा जाता है कि सबसे पहले मूली की खेती हेलेनिस्टिक और रोमन काल में की गई थी। इसके अलावा इतिहास में इसका ज्यादा जिक्र देखने को नहीं मिलता है।

मूली में प्रोटिन, कर्बोहायड्रेट,फॉस्फरस और लोह समेत अन्य पोषक तत्त्व अच्छी मात्र में पाए जाते हैं। इस कारण यह हमारे शरीर के कई सारे विकारों के लिए लाभदायक है। भारत में इसका सेवन पकाकर व कच्चे रूप में भी करते हैं। बवासीर, मधुमेह, मुहाँसे समेत अन्य विकारों के लिए फायदेमंद है।

भारत में मूली की खेती (उत्पादन और सबसे ज्यादा कहाँ)

Radish Farming In India: पूरे भारत में वर्षभर मूली की खेती (Radish Farming) की जाती है। उत्तरी मैदानी राज्यों में मुख्य रूप से मूली की खेती होती है। इसका अधिक उत्पादन करने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असोम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश शामिल है। बता दें कि भारत में मूली का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले राज्य हरियाणा और पश्चिम बंगाल है। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2021-22 में 548.77 हज़ार टन मूली का उत्पादन हुआ था। जबकि हरियाणा 550.07 हज़ार टन मूली उत्पादन के साथ पहले स्थान पर रहा।

खेत की तैयारी

Radish Farming In Hindi: मूली की खेती सफलतापूर्वक करने के लिए आपको सबसे पहले अच्छी तरह से खेत को तैयार करने की जरुरत होगी। आगे आपको मूली की खेती करने के लिए खेत को कैसे तैयार करना है, इसकी स्टेप बाय स्टेप प्रक्रिया बताई गई है।

  • सबसे पहले आपको अच्छी तरह से खेत की सफाई करना है।
  • अब आप जुताई का कार्य कर सकते हैं।
  • आपको करीब 5 से 6 बार खेत की जुताई करनी चाहिए।
  • ध्यान रहे की मूली की जड़ नीचे की तरफ बढ़ती है, इसलिए खेती की तैयारी करते समय गहरी जुताई करें।
  • ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल से आप खेत की जुताई करें।
  • हल से जुताई पूरी हो जाने के बाद कल्टीवेटर की सहायता से जुताई करें।
  • अंत में खेत को समतल कर दें।
  • इस तरह से मूली की खेती के लिए आपका खेत तैयार हो जायेगा।

मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

यदि आप मूली की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए बलुई, रेतीली दोमट मिट्टी श्रेष्ठ होती है। भुरभुरी मिट्टी में मूली की पैदावार अच्छी होती है। ध्यान रहे कि कठोर और भारी मिट्टी में मूली की खेती करने से बचें। आप नमी मिट्टी में ही मूली के बीजों की बुवाई करें। मिट्टी का पीएच मान भी अच्छी उपज के लिए जरूरी है। मूली की खेती हेतु मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

मूली की खेती के लिए मौसम व जलवायु

Radish Farming In Hindi: मूली की अच्छी और गुणवत्ता वाली फसल हासिल करने के लिए सही मौसम और जलवायु आवश्यक है। नीचे आपको उपयुक्त मौसम और जलवायु से सम्बंधित जानकारी दी गई है।

मौसम:

  • ठंड का मौसम मूली के अच्छे विकास के लिए बेहतर माना जाता है।
  • गर्मी के मौसम में मूली की खेती करने से बचना चाहिए।
  • यदि आप गर्मी में मूली की खेती करते हैं तो दिन में 2 से 3 बार इसे पानी देना होगा।

जलवायु:

  • मूली के लिए आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी मानी गई है।
  • मूली के बीजों को अंकुरित होने में 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
  • अधिक तापमान मूली की फसल को प्रभावित कर्ता है।
  • 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान मूली की गुणवत्ता को कम कर देता है।

बीज की मात्रा

Radish Farming In India: बुवाई के लिए बीजों की मात्रा खेत के आकार, बीज की गुणवत्ता और उनकी किस्म पर निर्भर करती है। आमतौर पर 5-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई के लिए बीजों की जरुरत पड़ती है।

मूली की उन्नत किस्में

  • पूसा हिमानी
  • जापानी सफ़ेद
  • पूसा रेशमी
  • रैपिड रेड व्हाइट टिपड
  • पंजाब पसंद
  • जोनपुरी मूली
  • कल्याणपुर
  • पंजाब अगेती
  • पंजाब सफेद
  • व्हाइट लौंग
  • हिसार मूली
  • संकर

पूसा हिमानी:  मूली की इस किस्म का स्वाद खाने में हल्का तीखा लगता है। यह किस्म 50 से 60 दिनों में ही पक कर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 320 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

जापानी सफेद: इस किस्म का स्वाद कम तीखा होता है। यह मुलायम और चिकनी होती है। इसकी जड़ों का रंग सफ़ेद होता है। यह किस्म मात्र 45 से 55 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जापानी सफेद  किस्म का औसतन उत्पादन 250 से लेकर 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

पूसा रेशमी: मूली की यह किस्म चिकनी और स्वाद में हल्की तीखी होती है। 55 से लेकर 60 दिन में किस्म पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार करीब 315 से लेकर 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

रैपिड रेड व्हाइट टिपड: मूली की यह किस्म काफी आकर्षक होती है, क्यूंकि इसके छिलके कर रंग लाल और गूदा सफेद रंग का होता है। यह स्वाद में भी थोड़ी मीठी होती है। मूली की यह किस्म मात्र 25 से 30 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

पंजाब पसंद: मूली की इस किस्म को आप किसी भी मौसम में उगा सकते हैं। यह किस्म कम समय में भी pak जाती है। मूली किया यह किस्म मात्र बुवाई के 45 दिन पश्चात् पककर तैयार हो जाती है।

मूली की बुवाई का समय व विधि

समय:

मूली की बुवाई का समय क्षेत्र के मौसम और बीज की किस्म पर निर्भर करता है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में muli ki kheti फरवरी से सितंबर में की जाती है। वहीँ पहाड़ी इलाकों मूली की बुवाई मार्च से अगस्त तक की जाती है।

विधि:

मूली के बीज व पौधों की बुवाई के लिए कतार विधि का इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के वक़्त, पंक्ति से पंक्ति या मेड़ से मेड़ की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों के बीच की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बुवाई के लिए 3 से 4 सेंटीमीटर गहरे गद्दे में बीजों को रोपित करें।

सिंचाई

आप किस मौसम में मूली की खेती कर रहे हैं, उसके अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। अधिकतर सर्दियों में मूली की खेती की जाती है, ऐसे में आपको 10 से 15 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी होगी। यदि आप गर्मी में इसकी फसल को बोते हैं तो 4 से 5 दिन के अंतराल में सिंचाई करने की आवश्यकता होगी। बारिश के मौसम में मूली के बीजों की बुवाई करते हैं तो ज्यादा पानी देने की आवश्यकता नहीं होगी। काफी दिन तक वर्षा ना होने की स्थिति में मिट्टी सूख जाने पर ही आप सिंचाई करें।

खाद व उर्वरक

Muli ki kheti के लिए आपको खाद और उर्वरक की आवश्यकता होगी। आप जैविक खाद और जरूरी उर्वरकों की सहायता से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

गोबर की खाद:

जब आप खेत की तैयारी करते हैं उस समय 200 से 250 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिलानी चाहिए। आप वर्मी कम्पोस्ट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

उर्वरक व उनकी मात्रा:

खाद के अलावा आपको 50 किलोग्राम फ़ॉस्फ़ोरस व 50 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल खेत में करना चाहिए।

नाइट्रोजन का प्रयोग:

80 किलोग्राम नाइट्रोजन की आपको जरुरत होगी। इसकी आधी मात्रा को आप बोवाई से पहले डालें। जबकि बची हुई आधी मात्रा का प्रयोग दो बार खड़ी फ़सल में करना चाहिए।

निराई व गुड़ाई

muli ki kheti in india: खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई करना जरूरी होता है। मूली की खेती के दौरान भी खरपतवार की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आपको बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। आपको फसल की 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे की आपको खरपतवार की समस्या का सामान ना करना पड़े।

रोग और उनकी रोकथाम

  • अल्टरनेरिया झुलसा रोग
  • महू रोग
  • काली जड़ सड़न

अल्टरनेरिया झुलसा रोग:

यदि पतियों पर छोटे घेरेदार गहरे काले धब्बे बनते हैं तो साझ लीजिये फसल में अल्टरनेरिया झुलसा रोग लग गया है।

महू रोग:

जब आप मंस्सों के सीजन में मूली की खेती करते हैं उस समय यह रोग फसल को लगने की संभावना रहती है। इस रोग के कीट बहुत छोटे होते हैं, धीरे-धीरे यह रस सोख लेते हैं।

काली जड़ सड़न:

यह रोग जड़ों को संक्रमित करता है। मूली की जड़ों को एफ़ानोमाइसेस रफ़ानी नामक कवक रोग संक्रमित कर देता है। जब यह बीमारी बढ़ती है तो धब्बे सूखी सड़न में विकसित हो जाते हैं।

रोकथाम:

रोग पर नियंत्रण करने के लिए कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। जिन पत्तियों को रोग लगा है उन्हें निकाल कर अलग करें। पत्ती तोड़ने के पश्चात् मैन्कोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना है।

कटाई/ तुड़ाई

मूली की किस्म के अनुसार मूली की फसल की कटाई होती है। मूली की कुछ किस्में 30 दिनों में तो कुछ 60 दिनों में पक जाती है। जब मूली की जड़ें पूरी तरह खाने लायक हो जाएं तब आप हाथों से पौधे को उखाड़कर जड़ों को धोएं और इन्हें आकार के अनुसार छांटकर रख लें।

FAQ

Q.1 मूली किस समय बोई जाती है?

वैसे तो वर्षभर आप मूली की बुवाई को कर सकते हैं, लेकिन दिसंबर से लेकर फरवरी तक का महीना मूली की खेती के लिए उपयुक्त माना गया है।

Q.2 मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौनसी है?

बलुई, रेतीली दोमट मिट्टी मूली की खेती के लिए सबसे बेहतर मानी गई है। इसमें जल निकासी भी अच्छी होती है।

Q.3 मूली की सबसे अच्छी किस्म कौनसी है?

पूसा हिमानी मूली की सबसे अच्छी किस्म मानी जाती है। इस किस्म का स्वाद हल्का तीखा होता है और यह खाने में स्वादिष्ट होती है। यह किस्म 50 से 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

Q.4 मूली की फसल कितने दिन में पक जाती है?

यह उसकी किस्म पर निर्भर करता है। 25 से 60 दिनों में मूली की फसल पक जाती है।

Q.5 मूली की सबसे तेजी से उगने वाली किस्म कौनसी है?

रैपिड रेड व्हाइट टिपड मूली की एक किस्म हैं जोकि 25 से 30 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

About Priyanshi Rao

मेरा नाम प्रियांशी राव है और मैं इस ब्लॉग की संचालक हूं। इस ब्लॉग पर मैं कृषि से जुड़े विषयों पर जानकारी देती है। मैंने कृषि विषय से अपनी पढाई की है और इस वजह से शुरुआत से ही मुझे कृषि से सम्बंधित कार्यों में काफी रूचि रही है। हरियाणा के एक गावं की रहने वाली हूं और उम्मीद करती हूं की मेरे द्वारा दी गई जानकारी किसान भाइयों के बहुत काम आ रही होगी। आप मुझे निचे दी गई ईमेल के जरिये संपर्क कर सकते है।

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