तिल के लड्डू हम सभी को काफी पसंद होते हैं, साथ ही इसे अन्य व्यंजनों के स्वाद को बढ़ाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। तिल के तेल का प्रयोग भी काफी किया जाता है। अलग-अलग उत्पादों को तैयार किये जाने के वजह से भारत में तिल की खेती (sesame farming in india) को बड़े स्तर पर किया जाता है। आज के इस ख़ास आर्टिकल में हम आपको तिल की खेती से सम्बंधित जानकारी बताने जा रहे हैं। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि तिल की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करनी है। किस तरह की जलवायु व मौसम में बुवाई करने से तिल की उपज अच्छी मिलती है। तिल के लिए कौनसी मिट्टी उपयुक्त होती है। इसके अलावा भी आपको तिल की खेती से जुडी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
तिल का इतिहास
जानकारी के अनुसार तिल के बीजों का उपयोग सबसे पहले चीन के द्वारा करीब 5 हजार वर्ष पहले किया गया था। वहीँ इसकी उत्पत्ति संभवतः एशिया या पूर्वी अफ़्रीका में बताई जाती है। भारत के प्राचीन पुरानों में भी तिल का जिक्र है, इसलिए यह भारतीय संस्कृति के लिए और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। आज भी सफलतापूर्वक भारत समेत अन्य देशों में तिल की खेती (sesame farming) की जार रही है।
भारत में तिल की खेती (उत्पादन और सबसे ज्यादा कहां) sesame farming in india
जैसा की आपको बताया कि भारतीय प्राचीन पुराणों में भी तिल का जिक्र देखने को मिलता है। पुराणों के अनुसार तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु शरीर से निकलने वाले पसीने से हुई थी। कई राज्यों में पूजा-पाठ के दौरान भी तिल का उपयोग किया जाता है। इसके कई सारे खाद्य उत्पादों को भी तैयार किया जाता है, जिसमें तिल का तेल, लड्डू दवाएँ तथा इत्र आदि शामिल हैं। इस वजह से भारत में भी तिल की पैदावार व्यापक रूप से की जाती है। उत्तरप्रदेश महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना जैसे राज्यों में तिल की खेती की जाती है। भारत में तिल के उत्पादन में उत्तरप्रदेश पहले स्थान पर है।
खेत की तैयारी
तिल की खेती (sesame farming) के लिए खेत को तैयार करना एक बेहद ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जब आप खेत को तैयार करें तो इस बात का ध्यान रखे कि खेत में किसी भी प्रकार की खरपतवार न हों। क्यूंकि इससे तिल की खेती (til ki kheti) प्रभावित हो सकती है। आइये आपको Til ki Kheti के लिए खेत को तैयार करने की स्टेप बाय स्टेप प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।
- सबसे पहले आपको मिट्टी को पलटने वाले हल से पहली जुताई करनी है।
- इसके पश्चात् आप अगली 2-3 जुताई के लिए कल्टीवेटर या देशी हल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- जब आप खेत की अंतिम जुताई करें उस समय आपको मिट्टी में खेत के अनुसार सड़ी हुई गोबर की खाद मिक्स कर देनी है।
- इसके बाद पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाना है, जिससे की जल पौधे की जड़ो तक आसानी से पहुंचे।
- बुवाई से पूर्व खेत की मिट्टी में नमी बनाने के लिए हल्की सिंचाई करें।
- इस तरह से आपका खेत तैयार हो जायेगा।
उपयुक्त मिट्टी
किसी भी फसल के लिए उसकी मिट्टी बहुत मायने रखती है। इसलिए तिल की खेती (til ki kheti) को भी उपजाऊ और उपयुक्त मिट्टी में ही करना चाहिए। तिल के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी को श्रेष्ठ माना गया है। आप काली मिट्टी में भी इसकी खेती को कर सकते हैं। बुवाई से पहले आप मिट्टी के पीएच मान को भी जांच लें। खेत के 3-4 अलग-अलग स्थानों से सैम्पल लेकर पीएच मान की जांच करवाएं। बता दें कि तिल की खेती के लिए 5.5 से 7.5 के बीच का पीएच मान उपयुक्त माना गया है। यदि आपके क्षेत्र की मिट्टी अम्लीय या क्षारीय है तो ऐसे स्थानों पर तिल की खेती नहीं की जा सकती।
मौसम एवं जलवायु
तिल की खेती (sesame cultivation in hindi) के दौरान आपको मौसं का ख़ास तौर पर ध्यान रखना चाहिए। आप इसकी खेती को ना ही ज्यादा सूखे के समय और ना ही अधिक बरसात के दौरान करें। इसकी खेती के लिए लंबे गर्म मौसम वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु को अच्छा माना गया है। खरीफ मौसम में भी तिल की खेती की जाती है। यानी आपको जून से जुलाई के बीच तिल की बुवाई करणी होती है।
बीज की मात्रा
भूमि के अनुसार आपको बीजों की मात्रा निर्धारित करणी है। यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में तिल की खेती (sesame cultivation) करना चाहते हैं तो आपको 5 से 6 किलोग्राम बीज की बुवाई करनी होगी। वहीँ यदि आप एक बीघे जमीन में तिल की खेती करते हैं तो दो किलो बीज लगता है।
तिल की उन्नत किस्मे
- तिलाथरा
- जे.टी.-22
- जे.टी.-55
- टी.के.जी.-8
- सारदा (YLM-66)
- टी.के.जी – 306
- पी. के. डी. एस. – 12
- उषा ( डी.एम.टी.-11-6-5)
- पयूर-1
- कनके वाइट
- कृष्णा
- माधवी
- राजेश्वरी
- कयमकूलम-1
तिल की मुख्य उन्नत किस्मों का विवरण
- राजेश्वरी: आन्ध्र प्रदेश में तिल की इस किस्म को काफी ज्यादा उगाया जाता है। इसकी फसल 85 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें तेल की प्रतिशत मात्रा 50.5 होती है। इसके दाने सफ़ेद और पौधों में शाखाओं की संख्या कम होती है।
- कयमकूलम-1: तिल की यह किस्म केरल में सबसे ज्यादा उगाई जाती है। इसकी फसल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें तेल की प्रतिशत मात्रा 50 होती है।
- कृष्णा: बिहार में तिल की इस किस्म को काफी ज्यादा उगाया जाता है। इसकी फसल 85 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें तेल की प्रतिशत मात्रा 46.0 होती है। इसके दाने काले रंग के होते हैं।
- जे.टी.-22: मध्यप्रदेश राज्य में तिल की इस किस्म को ज्यादा पैदा किया जाता है। इसकी फसल 72 से 88 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें तेल की प्रतिशत मात्रा 58.3 प्रतिशत होती है।
बुवाई का समय और विधि
तिल के बीजों की बुवाई जुलाई के तीसरे और चौथे सप्ताह के बीच करने से उत्पादन अच्छा होता है। आप जून में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं। खेतों में बुवाई के दौरान आपको दो सेमी. की गहराई के साथ बीजों को रोपित करना है। ध्यान रहे कि पौधों की दूरी 30 सेमी x 10 सेमी होनी चाहिए। यदि तिल के बीजों का आकार छोटा है तो इ स्थिति में आपको बीज को रेत, राख या सूखी हल्की बलुई मिट्टी में मिलाकर बुवाई करनी है।
सिंचाई
जब आप तिल की खेती (sesame cultivation) करते हैं तो इसके लिए आपको ज्यादा सिंचाई की जरुरत नहीं होती है। बारिश में बुवाई होने की वजह से वर्षा के पानी से ही इसकी पूर्ति हो जाती है। जब फसल आधी पककर तैयार हो जाये तब आप इसकी अंतिम सिंचाई जरूर कर सकते हैं।
खाद एवं उर्वरक
तिल की अच्छी गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त करने के लिए आपको बुवाई के समय गोबर की खाद मिलनी चाहिए। इसके अलावा आप ऐजोटोबेक्टर व फास्फोरस विलय बैक्टीरिया (पीएसबी) का भी प्रयोग कर सकते हैं। आप प्रति हैक्टेयर पांच किलोग्राम इसका इस्तेमाल करें। इसके साथ ही बुवाई से पूर्व आपको 250 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग भी करना है, यह आपकी फसल के लिए प्राकृतिक उर्वरक का कार्य करता है।
निराई गुड़ाई
तिल की खेती (sesame cultivation in hindi) के दौरान खरपतवार का खतरा बना रहता है। इससे बचाव के लिए आपको बुवाई के बाद दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। आप बुबाई के 15-20 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करें, जबकि दूसरी बुवाई 30-35 दिन बाद कर सकते हैं।
फसल में रोग और उनकी रोकथाम
- फाइटोफ्थोरा ब्लाइट
- फाइलोडी
- झुलसा
- अल्टनेरिया लीफ़ सपाट
तिल की फसल को कीटों और रोगों से बचाने के लिए बीजों को उपचारित करना चाहिए। इसके लिए आप थायरम और कार्बेन्डाज़िम का घोल तैयार करें और इससे बीजों को उपचारित करें। बुवाई के 30-45 दिन और 45-55 दिन बाद मेन्कोजेब 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव करें। गाल मक्खी, हाक मक्खी और फ़ड़का से फसल को बचने के लिए मोनोक्रोटोफ़ॉस 0.75 लीटर या क्यूनालफ़ॉस 1.5 लीटर 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कटाई / तोड़ाई
sesame cultivation in hindi: सही समय पर आपको तिल की कटाई करनी चाहिए। बता दें कि तिल की फसल को उस समय काटें जब पौधों की पत्तियां पीली होकर गिरने लग जाएं। जब कटाई पूरी हो जाये तो पौधों का बंडल बनाकर इन्हें खेत में ही छोड़ दें। 8 से 10 दिन तक इन्हें सुखाने दें। अब तिरपाल बिछा कर आप लकड़ी के डंडों झड़ाई करें। झड़ाई की प्रक्रिया हो जाने के बाद फटक कर बीज को साफ करें। इसके बाद इन्हें धूप में अच्छी तरह से सुख जाने दें।
FAQ
Q.1 तिल की बुवाई करने का सही समय क्या है?
खरीफ मौसम में तिल की सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। आप जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तिल की बुवाई कर सकते हैं।
Q.2 तिल की फसल कितने दिन में पक जाती है?
यह उसकी किस्म पर निर्भर कर्ता है। आमतौर पर तिल की फसल 70 से 80 दिनों के बीच पक जाती है।
Q.3 एक बीघा में तिल्ली कितनी होती है?
यदि आप एक बीघे में दो किलो बीज लगाते हैं तो इससे 4 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
Q.4 क्या तिल को अधिक सिंचाई की जरुरत होती है?
जी नहीं! तिल की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। वर्ष ऋतू में इसकी बुवाई होने की वजह से इसकी पानी की पूर्ती वर्षा जल से ही हो जाती है।
Q.5 भारत में तिल का सबसे ज्यादा उत्पादन किस राज्य में होता है?
उत्तरप्रदेश राज्य के बुंदेलखंड क्षेत्र में तिल का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। हर वर्ष या राज्य तिल उत्पादन में पहले स्थान पर आता है।